Ad 1

Phaty kapron khulay balon ki janib

           پھٹے کپڑوں کھلے بالوں کی جانب

Phaty kapron khulay balon ki janib

وہ کیوں آئے گا ہم ایسوں کی جانب
फटे कपड़ों खुले बालों की जानिब
वो क्यों आएगा हम ऐसों की जानिब
یتیمی اور تری یادوں کو لے کر
پلٹ جاؤں گا دو قبروں کی جانب
معافی بھی نہیں دو گے مجھے کیا ؟
نہ دیکھو گے ؟ بندھے ہاتھوں کی جانب ؟
شبِ اضحٰی ! برائے شام و اقصی
کوئی عیدی ؟ لٹے حالوں کی جانب ؟
بہت زخمی تھا لیکن بھاگتا تھا
کبھی بوڑھوں کبھی بچوں کی جانب !
یہ کس نے تعزیت کے پھول بھیجے ؟
مری آنکھوں کے گُم کتبوں کی جانب
محرّم آ رہا ہے اہلِ گریہ
دریچے کھول دو رستوں کی جانب !
حبیب ابنِ مظاہر کی قسم ہے !
میں تکتا رہ گیا یاروں کی جانب !!
قبیلہ چھوڑ کر آیا تھا لڑنے
تو کون آتا مرے ٹکڑوں کی جانب !
مرے چہرے پہ دنیا بھر کی نظریں
مرا چہرہ ترے پیروں کی جانب
مری بستر نہیں،دل میں جگہ تھی
میں بیٹھا تھا ترے قدموں کی جانب
نہ جانے آگ ہے یا راگ ہے وہ
نہیں ہوتی وہ کم ظرفوں کی جانب
دمشق اس کا ہے ،اردن شام اس کے
جمال اس کا انہی خِطوں کی جانب
ہمیشہ سے ہمیشہ تک رہوں گا
اُنہی ہونٹوں ( اُنہی نظموں) کی جانب
علی اُس نے مرے سینے پہ لکھا
یہ سینہ ہو سدا سچوں کی جانب !
यतीमी और तेरी यादों को लेकर
पलट जाऊंगा दो क़ब्रों की जानिब
म्आफ़ी भी नहीं दोगे मुझे क्या
न देखो गे? बंधे हाथों की जानिब?
शब ए अज़हा! बराए शाम ओ अक़सा
कोई ईदी? लूटे हालों की जानिब
बहुत जख़मी था लेकिन भागता था
कभी बूढ़े कभी बच्चों की जानिब
ये किस ने ताज़ियत के फूल भेजे?
मेरी आंखों के गुम कुतबों की जानिब
मुहर्रम आ रहा है अहले गीर्या
दरीचे खोल दो रस्तों की जानिब!
हबीब इबने मज़ाहिर की क़सम है
मैं तकता रह गया यारों की जानिब!!
क़बिला छोड़ कर आया था लड़ने
तो कौन आता मेरे टुकड़ों की जानिब
मेरे चेहरे पे दुनिया भर की नज़रें
मेरा चेहरा तेरे पैरों की जानिब
मेरी बिस्तर नहीं , दिल में जगह थी
मैं बैठा था तेरे क़दमों की जानिब
न जाने आग है या राग है वो
नहीं होती वो कमज़र्फों की जानिब
दमिश्क़ उसका है, अर्दन शाम उसकी
जमाल उसका उन्ही ख़ित्तों की जानिब
हमेशा से हमेशा तक रहूंगा
उन्ही होंटों (उन्ही नज़्मों) की जानिब
अली उस ने मेरे सीने पे लिक्खा
ये सीना हो सदा सच्चों की जानिब !
ALI ZARYOUN

Post a Comment

0 Comments